महत्वपूर्ण व्यक्तियो पर जी.के- देवेन्द्रनाथ टैगोर, तंजोर बालासरस्वती, फखरुद्दीन अली अहमद-
देवेन्द्रनाथ टैगोर
▪️देवेंद्रनाथ ठाकुर का जन्म 15 मई, 1817 में बंगाल में हुआ था।
▪️देवेन्द्रनाथ टैगोर ने राजाराम मोहन राय के विचारों से प्रभावित होकर 1839 ई. में 'तत्वबोधिनी सभा' की स्थापना की।
▪️राजा राम मोहनराय के बाद 1843 ई. में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज को पुनर्जीवित किया।
▪️1865 ई. (1867 ई.-RBSE12th) में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने केशवचंद्र सेन को आचार्य के पद से हटा दिया। ब्रह्म समाज दो भागों में बँट गया।
▪️देवेन्द्रनाथ टैगोर का समाज 'आदि ब्रह्म समाज' एवं केशवचन्द्र सेन का समाज 'भारत का ब्रह्म समाज' (भारतीय ब्रह्म समाज) कहलाया ।
▪️देवेन्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्म समाज ने विधवा विवाह का समर्थन, स्त्री शिक्षा को बढ़ावा, बहुपत्नी प्रथा का उन्मूलन तथा आडंबरपूर्ण धार्मिक कर्मकांडों को समाप्त करने जैसे सराहनीय कार्यों पर बल दिया।
▪️19 जनवरी,1905 को देवेन्द्रनाथ का निधन हो गया।
तंजोर बालासरस्वती
▪️'भरतनाट्यम' की प्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती का जन्म 13 मई, 1918 को तमिलनाडु के चेन्नई (मद्रास) शहर में हुआ था।
▪️एक नर्तकी के रूप में टी. बालासरस्वती ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1925 में की थी। वह दक्षिण भारत के बाहर भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत करने वाली पहली कलाकार थीं। उन्होंने पहली बार सन् 1934 में कोलकाता में अपनी नृत्य कला को प्रस्तुत किया था।
▪️टी. बालासरस्वती को वर्ष 1955 में 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार', वर्ष 1973 में 'मद्रास संगीत अकादमी' से 'कलानिधि पुरस्कार' और वर्ष 1977 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया था।
▪️टी. बालासरस्वती का निधन 9 फ़रवरी, 1984 को हुआ।
भरतनाट्यम (तमिलनाडु)
▪️भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से जन्मी इस नृत्य शैली का विकास तमिलनाडु में हुआ।
▪️मंदिरों में देवदासियों द्वारा शुरू किए गए इस नृत्य को 20वीं सदी में रुक्मिणी देवी अरुंडेल और ई. कृष्ण अय्यर के प्रयासों से पर्याप्त सम्मान मिला।
▪️नंदिकेश्वर द्वारा रचित ‘अभिनय दर्पण’ भरतनाट्यम के तकनीकी अध्ययन हेतु एक प्रमुख स्रोत है।
▪️भरतनाट्यम नृत्य के संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक खड़ताल वादक होता है।
▪️भरतनाट्यम नृत्य के कविता पाठ करने वाले व्यक्ति को ‘नडन्न्वनार’ कहते हैं।
▪️भरतनाट्यम में शारीरिक क्रियाओं को तीन भागों में बाँटा जाता है - समभंग, अभंग और त्रिभंग।
▪️इसमें नृत्य क्रम इस प्रकार होता है- आलारिपु (कली का खिलना), जातीस्वरम् (स्वर जुड़ाव), शब्दम् (शब्द और बोल), वर्णम् (शुद्ध नृत्य और अभिनय का जुड़ाव), पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) तथा तिल्लाना (अंतिम अंश विचित्र भंगिमा के साथ)।
▪️भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है।
▪️इस नृत्य के प्रमुख कलाकारों में पद्म सुब्रह्मण्यम, अलारमेल वल्ली, यामिनी कृष्णमूर्ति, अनिता रत्नम्, मृणालिनी साराभाई, मल्लिका साराभाई, मीनाक्षी सुंदरम् पिल्लई, सोनल मानसिंह, वैजयंतीमाला, स्वप्न सुंदरी, रोहिंटन कामा, लीला सैमसन, बाला सरस्वती आदि शामिल हैं।
फखरुद्दीन अली अहमद
▪️फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई, 1905 को पुरानी दिल्ली के हौज़ क़ाज़ी इलाक़े में हुआ था। इनके पिता का नाम 'कर्नल जलनूर अली अहमद' और दादा का नाम 'खलीलुद्दीन अहमद' था।
▪️वर्ष 1928 में इंग्लैंड से विधि में डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् फखरुद्दीन अली अहमद वापस भारत लौट आए और पंजाब उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर नामांकित हुए।
▪️कालांतर में उन्होंने अपने गृह राज्य असम के गुवाहाटी उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर कार्य करना प्रारंभ किया और जल्द ही वे अपनी प्रतिभा की बदौलत उच्चतम न्यायालय में बतौर वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कार्य करने लगे।
▪️वर्ष 1931 में फखरुद्दीन अली अहमद ने अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण कर ली।
▪️वर्ष 1938 में जब असम में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी तो फखरुद्दीन अली अहमद को वित्त एवं राजस्व मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया।
▪️उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और कई अवसरों पर जेल भी गए।
▪️महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जब सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ तो फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने भी उसमें भाग लिया। इस कारण अंग्रेज़ सरकार ने इन्हें 13 अप्रैल, 1940 को गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए जेल में डाल दिया। रिहा होने के कुछ समय पश्चात् इन्हें सुरक्षा कारणों से पुन: गिरफ्तार कर लिया गया तथा इन्हें अप्रैल, 1945 तक साढ़े तीन वर्ष जेल भुगतनी पड़ी।
▪️वर्ष 1952 में फखरुद्दीन अली अहमद को राज्यसभा सदस्य चुना गया।
▪️24 अगस्त, 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद ने भारत के पाँचवें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।
▪️वे मृत्युपर्यंत राष्ट्रपति पद पर बने रहे; 11 फरवरी, 1977 को राष्ट्रपति भवन में हृदयाघात के कारण उनका देहांत हुआ।
शमशेर बहादुर सिंह
▪️स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता के प्रमुख कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 13 जनवरी, 1911 को देहरादून (उत्तराखण्ड) में हुआ।
▪️उनकी आरंभिक शिक्षा देहरादून तथा हाईस्कूल-इंटर गोंडा से हुई।
▪️शमशेर बहादुर सिंह ‘दूसरा तार सप्तक’ के कवि थे।
▪️शमशेर बहादुर सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रसिद्ध चित्रकार उकील-बंधुओं से कला - प्रशिक्षण लिया।
▪️अनूठे काव्य- बिंबों का सृजन करने वाले शमशेर केवल असाधारण कवि ही नहीं, एक अनूठे गद्य-लेखक भी थे।
▪️'दोआब', 'प्लाट का मोर्चा', जैसी गद्य रचनाओं के माध्यम से उन्हें विशिष्ट गद्यकार के रूप में पहचाना जा सकता है।
▪️कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी नहीं हूँ मैं, इतने पास अपने, काल तुझसे होड़ है मेरी (काव्य-संग्रह); कुछ गद्य रचनाएँ, कुछ और गद्य रचनाएँ (गद्य-संग्रह) इत्यादि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
▪️'रूपाभ', 'कहानी', 'नया साहित्य', 'माया', 'नया पथ', 'मनोहर कहानियाँ' आदि के संपादन में इनका महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
▪️शमशेर बहादुर सिंह उर्दू-हिन्दी कोश प्रोजेक्ट में संपादक रहे और विक्रम विश्वविद्यालय के 'प्रेमचंद सृजनपीठ' के अध्यक्ष रहे।
▪️शमशेर बहादुर सिंह को वर्ष 1977 में साहित्य अकादमी, वर्ष 1987 में मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार तथा वर्ष 1989 में कबीर सम्मान प्राप्त हुआ।
▪️12 मई, 1993 को उनका देहांत हो गया।
मृणालिनी साराभाई
▪️मृणालिनी साराभाई का जन्म केरल में 11 मई, 1918 को हुआ था
▪️अपने बचपन का अधिकांश समय मृणालिनी साराभाई ने स्विट्जरलैंड में बिताया। यहां 'डेलक्रूज स्कूल' से उन्होंने पश्चिमी तकनीक से नृत्य कलाएं सीखीं। उन्होंने शांति निकेतन से भी शिक्षा प्राप्त की थी।
▪️मृणालिनी साराभाई ने भारत लौटकर जानी-मानी नृत्यांगना मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया था और फिर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य और पौराणिक गुरु थाकाज़ी कुंचू कुरुप से कथकली के शास्त्रीय नृत्य-नाटक में प्रशिक्षण लिया।
▪️यह भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना थीं। उन्हें 'अम्मा' के तौर पर जाना जाता था। शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान तथा उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।
▪️उनके पति विक्रम साराभाई देश के सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक थे। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना और समाजसेवी हैं।
▪️मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सेना झांसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ़ थीं।
▪️भारत सरकार की ओर से मृणालिनी साराभाई को 'पद्मश्री' से भी सम्मानित किया गया था।
▪️'यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंगलिया', नॉविच यूके ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। 'इंटरनेशनल डांस काउंसिल पेरिस' की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए भी नामित किया गया था।
▪️प्रसिद्ध 'दर्पणा एकेडमी' की स्थापना मृणालिनी साराभाई ने की थी।
▪️मृणालिनी साराभाई का निधन 21 जनवरी, 2016 को अहमदाबाद, गुजरात में हुआ।
योगेन्द्र सिंह यादव
● योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के औरंगाबाद अहीर स्थित एक गाँव में 10 मई, 1980 को हुआ था।
● उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के ही एक विद्यालय में पूरी की और पाँचवीं कक्षा के बाद सन्नोटा श्रीकृष्ण कॉलेज, बुलंदशहर में दाखिला ले लिया।
● उनके पिता राम करण सिंह ने 11 कुमाऊँ को एक सिपाही के रूप में अपनी सेवाएँ दी थी तथा वर्ष 1965 एवं वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्त्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभाई थी।
● उन्हें महज़ सोलह साल की उम्र में ही 'ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट' में शामिल कर लिया गया।
● जून, 1996 में योगेन्द्र ने भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) मानेकशॉ बटालियन को ज्वॉइन किया। आईएमए में 19 महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने 6 दिसंबर, 1997 को आईएमए से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
● योगेन्द्र महज 16 साल 5 महीने के थे तभी वह एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
● 12 जून, 1999 को उनकी बटालियन ने 14 अन्य सैनिकों के साथ टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया और इस ऑपरेशन के दौरान 2 अधिकारी, 2 जूनियर कमीशन अधिकारी और 21 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
● वह घटक पलटन का हिस्सा थे और उन्हें 3/4 जुलाई, 1999 की रात को टाइगर हिल पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था।
● टाइगर हिल की चोटी पर पहुँचने के लिए पलटन को पहाड़ के 16,500 फीट की खड़ी बर्फीली और चट्टानी पहाड़ी पर चढ़ना था।
● उनके वीरतापूर्ण कार्य से प्रेरित होकर, पलटन के अन्य सदस्यों के अंदर भी उत्साह आया और उन्होंने टाइगर हिल टॉप पर कब्जा कर लिया।
● उनके शरीर पर 12 गोलियाँ लगीं; टाइगर हिल ऑपरेशन के दौरान एक गोली उनके दिल में छेद कर गई और 12 गोलियाँ उनके हाथ और पैर में लगी थी।
● मेजर योगेन्द्र सिंह यादव के इस बहादुरी और साहस को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें ‘परम वीर चक्र’ से सम्मानित किया।
● 'ऑपरेशन विजय' में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उन्होंने मुस्कोह घाटी स्थित सेना की एक चौकी पर अधिकार करने के लिए कदम बढ़ाया।
● यद्यपि इस बात पर विश्वास करना बहुत मुश्किल है कि कोई ऐसा व्यक्ति सचमुच हो सकता है, लेकिन ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव जो कि भारतीय थल सेना के एक जीवंत उदाहरण हैं, उन्हें 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान उनके वीरतापूर्ण एवं साहसिक कारनामों के लिए 26 जनवरी, 2000 को देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘परम वीर चक्र’ से नवाज़ा गया।
● परमवीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित केवल तीन ही जीवित प्राप्तकर्ता सैनिक हैं जिनमें से बाना सिंह, संजय कुमार और योगेन्द्र सिंह यादव शामिल हैं।
रामेश्वर नाथ काव
● रामेश्वर नाथ काव का जन्म 10 मई, 1918 को वाराणसी के एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
● आर. एन. काव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की शिक्षा प्राप्त की थी।
● वे वर्ष 1940 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए तथा वर्ष 1948 में इंटेलिजेंस ब्यूरो से जुड़ गए।
● इंटेलिजेंस ब्यूरो का कार्यभार संभालने के साथ ही उन्हें सबसे पहले आज़ाद भारत के प्रमुख लोगों की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया। इसी दौरान वह भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत सुरक्षा प्रमुख बने।
● वर्ष 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद ऐसी जाँच एजेंसी की जरूरत महसूस हुई जो देश को विदेशी दुश्मनों से सचेत रख सके।
● पण्डित नेहरू के कार्यकाल में काव अपनी योग्यता साबित कर चुके थे, इसलिए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने ‘रॉ’ को गठित करने के विचार को मंजूरी दे दी। इस तरह ‘रॉ’ की स्थापना हुई और काव को ‘रॉ’ का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
● सिक्किम के भारत में विलय में भी काव की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने भारत की एक सुरक्षा बल इकाई, 'नेशनल सिक्योरिटी गार्ड' (एनएसजी) का भी गठन किया था।
● 20 जनवरी, 2002 को रामेश्वर नाथ काव की नई दिल्ली में मृत्यु हो गई।
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