चंपारण सत्याग्रह आंदोलन 1917 champaran satyagrah andolan 1917
चंपारण सत्याग्रह 1917 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। यह बिहार के चंपारण जिले में उत्पन्न दुष्प्रभावों के खिलाफ लड़ाई थी।
इस सत्याग्रह का मुख्य उद्देश्य था कि भूमिदारों द्वारा किये गए किसानों पर दबाव कम करें और उनकी समस्याओं का समाधान करें। चंपारण में तब भूमिदारों द्वारा किसानों पर तीन प्रकार के दबाव थे - उन्हें जमीन में उगाने के लिए इच्छित फसल का चुनाव नहीं करने दिया जाता था, उन्हें न्यायालय जाने से रोका जाता था, और उन्हें भूमिदारों द्वारा अनुमति नहीं दी जाती थी कि वे किसी अन्य जगह में नौकरी या व्यवसाय ढूंढें।
महात्मा गांधी ने इस समस्या को समाधान करने के लिए चंपारण में सत्याग्रह आरंभ किया और इसमें संगठित रूप से काम किया। उन्होंने चंपारण के किसानों की समस्याओं के बारे में जानकारी जुटाई और उन्हें अपनी सहायता प्रदान की।
उन्होंने किसानों को अपने अधिकारों के बारे में शिक्षा दी और उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की। महात्मा गांधी ने भूमिदारों से मुलाकात करने की कोशिश भी की, लेकिन ये कामयाब नहीं हुआ।
इस सत्याग्रह के दौरान भारत के राजदूत राजेन्द्र प्रसाद और आनंद मोहन बोस ने भी समर्थन दिया। इस सत्याग्रह में बाबू राजेन्द्र प्रसाद की मुख्य भूमिका थी, वे इस सत्याग्रह के समय अपने पत्रकारिता के माध्यम से अधिकतर क्षेत्रों में इस समस्या को समाधान के लिए प्रसारित करते रहे।
इस सत्याग्रह के फलस्वरूप, भूमिदारों ने अपनी अतिक्रमणीय कार्रवाई से वापसी करने के लिए सहमति दी और चंपारण के किसानों को उनके अधिकारों का उचित सम्मान देने का वादा किया। यह सत्याग्रह महात्मा गांधी के जीवन में उनके अस्थायी सत्याग्रह के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
चंपारण सत्याग्रह आंदोलन कारण -
चंपारण सत्याग्रह के मुख्य कारण थे चंपारण जिले में भूमिदारों द्वारा रोग लगाने वाले इंद्रधनुष फसल के खेतों में अनैतिक तरीके से उपज के उसूलों को तोड़ा जाना जिससे किसानों के अधिकारों पर अत्याचार होता था। भूमिदारों द्वारा खेत में अनियमित उपज के निर्धारण से किसानों को कम उपज के लिए कम भुगतान मिलता था। इसके अलावा, भूमिदारों द्वारा रख-रखाव नहीं किए जाने से फसलों में कीट और बीमारियों का प्रसार हो गया था। इससे किसानों को नुकसान होता था और वे उन्हें ठीक करने के लिए पैसे खर्च करने के लिए असमर्थ थे।
इस समस्या के समाधान के लिए, महात्मा गांधी के आह्वान पर भूमिहीनों का समिति बनाकर सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया गया था। इस सत्याग्रह में, चंपारण जिले के किसानों ने उनके अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और अपनी माँगों को पूरा करने के लिए अहिंसा के साथ आंदोलन किया।
गाँधीजी का चंपारण आगमन-
चंपारण सत्याग्रह के समय महात्मा गांधी वर्ष 1917 में भारत में वापस आए थे। उन्होंने अपनी आगमन के समय कुछ दिन पहले आधुनिक भारत के महान विचारक एवं साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ एक बैठक की थी। उन्होंने उनसे अपनी सहायता की अपेक्षा की थी जो वे चंपारण जाने के पहले कर सकते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें उनके कार्य में सफलता की कामना की।
गांधीजी ने चंपारण पहुँचकर किसानों के साथ रहना शुरू किया और उनके समस्याओं को समझने का प्रयास किया। उन्होंने अपने सम्मुख आने वाली समस्याओं को देखकर यह निश्चय किया कि यह लोग अपने अधिकारों के लिए सत्याग्रह करेंगे। उन्होंने जनता के बीच जाकर समस्याओं को समझाया और उन्हें समाधान निकालने के लिए उन्हें नेतृत्व करने की अपील की।
चंपारण सत्याग्रह के दौरान, महात्मा गांधी ने रोजगार की माँग के लिए अधिकारियों से मुलाकात की और उनसे उनकी माँग को लेकर चर्चा की। इसके बाद वह शिकायतों के विवरणों का एक समिति में विस्तार से विश्लेषण करने के लिए कहा गया था।
उन्होंने इस समय भ्रमण करते हुए कुछ समाज सुधारकों से मिला जिन्होंने उन्हें चंपारण के किसानों के मुद्दे के बारे में बताया था। वह उन लोगों से मिला, जो बिना किसी वेतन के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए काम कर रहे थे।
उन्होंने अपनी सहायता दी और उन्हें अपनी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपनी सत्याग्रह तकनीक का उपयोग करके कुछ समय तक अंधेरे में रहने वाले ग्रामीण क्षेत्रों में अपने समर्थकों को उनके मुद्दों के बारे में शिक्षा दी और उन्हें लोगों के साथ आधुनिक ढंग से जोड़ने की कोशिश की।
चम्पारण सत्याग्रह का परिणाम एवं निष्कर्ष-
चंपारण सत्याग्रह ने चंपारण जिले के किसानों को राजस्व विभाग के दुरुपयोग और अन्याय से बचाया। इस आंदोलन के माध्यम से राजस्व विभाग द्वारा बढ़ाए गए अत्याचारों का अंत हुआ और चंपारण के किसानों को उनके अधिकारों की रक्षा मिली।
इस सत्याग्रह के निष्कर्ष में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थापित हुआ था। इस सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी ने अनुशासन, समझौता और अहिंसा के सिद्धांतों का उपयोग किया, जो बाद में उनके नेतृत्व में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अन्य आंदोलनों में भी उपयोग किए गए।
चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। यह आंदोलन उन दिनों के बाकी स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण था
चंपारण सत्याग्रह के बाद, महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अहिंसा, सत्याग्रह, सत्य और अनुशासन के सिद्धांतों का उपयोग करने का विश्वास अपनाया। उन्होंने अहिंसा के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को भारत से निकालने के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने अनेक सत्याग्रह और आंदोलनों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ाई, जिनमें दंडी मार्च, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, काला दीवस आंदोलन, बर्डोल सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन शामिल हैं।
महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में अपने सिद्धांतों और विचारों का प्रचार किया और देश के जनता को उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को बेहतर तरीके से भारत से अलग होने के लिए उनके अधिकारों की माँग की।
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