Bhartiya relways me takniki part 1|भारतीय रेलवे में तकनीकी उन्नयन PART 1
भारतीय रेलवे में तकनीकी उन्नयन
भारत में रेलवे
मॉल और यात्रियों के परिवहन का मुख्य साधन है तथा भारत की लगभग 70% जनसंख्या
प्रतिदिन इस परिवहन प्रणाली का उपयोग करती है| भारतीय रेल नेटवर्क विश्व का दूसरा
सबसे बड़ा तथा एकल प्रबंधनाधीन भी यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है|
भारतीय रेलवे का जाल पुरे देश में
व्यापक रूप से फैला है तथा जहाँ यह एक ओर घनी आबादी वाले महानगरो में फैला है वही
दूसरी ओर वह सुदूर ग्रामीण क्ष्रेत्रो में भी अपनी पहुँच स्थापित करता है | भारतीय
रेलवे ने 2014 में पूर्वोत्तर के दो प्रमुख राज्य-अरुणाचल प्रदेश की राजधानी
ईटानगर एवं मेघालय भी रेलवे के मानचित्र से जुड़ चुके है|
वर्त्तमान में भारतीय रेलवे की कुल
लम्बाई 66,687 किमी है तथा इतने बड़े रेलमार्गों पर 7,216 स्टेशन स्थित है; जिससे
लगभग 3 करोड़ यात्री तथा 2.8 मिलियन टन माल प्रतिदिन ढोया जाता है|
भारतीय रेलवे का इतिहास 1853 ई. में
ब्रिटिश काल से शुरू होता है, जब पहली बार मुंबई से थाणे के मध्य पहली रेलगाड़ी
चलाई गई थी एवं तब से लेकर आज तक भारतीय रेलवे ने स्वंय को उन्नत किया है एवं समय के
अनुसार अपनी तकनीकी क्षमताओ एवं प्रौद्योगिकीयो को उन्नत किया है| इस आलेख में हम
भारतीय रेलवे में हुए तकनीक उन्नयन पर प्रकाश डालने का प्रयास करेगे|
विभिन्न तकनीक उन्नयन
पिछले दो दशको से भारतीय रेलवे में
तकनीकों के विकास और उनके उन्नयन पर विशेष ध्यान दिया है| इसमें मुख्या रूप से
ट्रेनों की गति और आवृति पर ध्यान दिया जा रहा है|
भारतीय रेलवे के चार मुख्य
क्ष्रेत्र ऐसे है, जिनपर ध्यान दिया जाना आवश्यक है| ये क्ष्रेत्र है-सुरक्षा
अवसंरचनात्मक विकास, ट्रेन परिचालन का सृद्रीधिकरण, यात्री सुविधाओ का विकास और
तकनीकी / प्रौधिगिकी का प्रयोग करना|
इन सभी मानको को ध्यान में रखते हुए
भारतीय रेलवे में पिछले कुछ वर्षो से कई महत्वपूर्ण तकनीक विकास किए गए है, जो
भारतीय रेलवे प्रणाली को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे
है|
रेलपथ प्रबंधन प्रणाली
भारतीय रेलवे ने रेलपथ प्रबंधक
प्रणाली का विकास किया है| यह एक डिजिटल प्रणाली है| जिसके माध्यम से रेलवे ट्रैकों
के बारे में सही-सही जानकारी एक प्लेटफार्म पर उपलब्ध कराई जाती है | यह एक
इलेक्ट्रानिक प्रणाली है, इसके माध्यम से रेलवे लाइनों का निरिक्षण, निगरानी और
देखरेख आनलाइन की जाती है|
यह प्रणाली रेलवे ट्रैको से
सम्बन्धित आकड़ो को संग्रहित कर सूचना का तीव्र गति से प्रसार करती है| इसके
साथ-साथ यह ईमेल के माध्यम से
सभी सूचनाओं को जूनियर
इंजीनियर से लेकर रेलवे बोर्ड को उपलब्ध करवाती है|
रेलवे में TMS
का उपयोग
भारतीय रेलवे
‘ट्रैक मैनेजमेंट सिस्टम (सी एम एस) से भारत में रेल गाड़ियों के तापमान तथा
नदियों पर बने पुलों में पानी के स्तर की निगरानी करने का कार्य कर रहा है|
इस वेब
आधारित टी एम एस को पूर्णत: उपयोग कर रेलवे के सभी डिवीजन द्वारा रेलवे ट्रैको की
निगरानी और उनकी मरम्मत का कार्य रियल टाइम मैनेजमेंट पर किया जा रहा है|
वायरलेस ब्रिज मॉनिटरिंग सिस्टम
वायरलेस
ब्रिज मॉनिटरिंग सिस्टम का उपयोग भारत में रेलवे पुलों की निगरानी हेतु किया जाता
है तथा यह सेंसर आधारित तकनीक पर कार्य करता है|
इस प्रणाली
का उपयोग पुलों की स्थिति, उनके क्षतिग्रस्त होने का कारण, क्षति की स्थिति तथा टूटे
पुलों की मरम्मत में किया जाता है| इस प्रणाली में पुलों के विभिन्न हिस्सों में
अलग-अलग तरह के संवेदको का उपयोग किया जाता है, जो कई तरह के संकेत प्रदान करते हैं
तथा इन संकेतों के आधार पर पुलों की मरम्मत तथा देख-रेख की जाती है|
इस प्रणाली
के विकास से पुलों के उपयोग की क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है, क्योंकि समयानुसार
इनका परीक्षण, निरीक्षण, निगरानी तथा मरम्मत करना आसान हो गया है|
ध्यातव्य है
कि भारत में रेलवे पुलों की संख्या को देखते हुए यह प्रणाली काफी सहायक साबित हुई
है, क्योंकि भारत में लगभग 147253 पुल हैं, जिनमें से 700 अति महत्वपूर्ण,12085
महत्वपूर्ण तथा 134738. पुल कम महत्वपूर्ण है|
उन्नत कोच और रेलगाड़ियां
स्मार्ट कोच
भारतीय रेलवे
रेलगाड़ियों में स्मार्ट कोच लगाने पर कार्य कर रहा है तथा ऐसे पहले कोच का
निर्माण
रायबरेली की मार्डन
कोच फैक्टरी में पूर्णतया मेक इन इंडिया विजन के आधार पर तैयार किया गया है|
इस कोच को
तैयार करने के पीछे मुख्य उद्देश्य यात्रियों को यात्रा के दौरान सुविधाओं को
बढ़ाना तथा सुरक्षित एवं उन्नत यात्रा का आनंद प्रदान करना है|
इस कोच में AC, डिस्क ब्रेक सिस्टम, फायर डिटेक्शन, अलार्म
सिस्टम, वाटर लेवल इंडिकेटर जैसी सुविधाएं मौजूद हैं| यह कोच ब्रेन घिसने, पहियों
की स्थिति, ट्रैक का हेल्थ कार्ड भी बताने में सक्षम होगा|
इसके अलावा
इसमें एक इमरजेंसी टाक बैंक सिस्टम लगा है| कोच के यात्री टॉयलेट के पास लगे इस
सिस्टम के बटन को दबाकर किसी भी परिस्थिति में सीधा गार्ड से बात कर मदद प्राप्त
कर सकेंगे|
इस कोच में
यात्री स्मार्टफोन और ट्रेन पर इन्फोटेनमेंट की सुविधा का लाभ उठा सकेंगे तथा यदि
ट्रेन कहीं बीच रास्ते में रुकी है, तो वह कहां और क्यों रुकी है तथा ट्रेन की
स्पीड क्या है, इसकी जानकारी भी यह उपलब्ध कराएगा|
दीनदयालु कोच
रेल मंत्रालय
ने रेल के जनरल डिब्बों को उन्नत करने की घोषणा वर्ष 2016 के अपने बजट में की थी|
रेल यात्रियों की सुविधाओं को बढ़ाने तथा जनरल डिब्बों में सफर करने वाले
यात्रियों के लिए उन्नत कोच के रूप में दीनदयालु कोच का निर्माण किया जा रहा है|
वास्तव में यह कोच अन्त्योदय एक्सप्रेस के लिए तैयार किया गया है|
दीनदयालु कोच
में एसी और नॉन एसी कोचों जैसी सीट लगी होगी तथा इसके साथ-साथ इसमें अग्निशामक और
चोरी प्रतिरोधी व्यवस्था भी कार्य करेगी| इसके अलावा इन कोचों में बायो टॉयलेट तथा
RO प्रणाली युक्त
पेयजल की सुविधा उपलब्ध होगी|
प्रत्येक डिब्बे
में कई मोबाइल चार्जर प्वाइंट के अलावा एल्युमीनियम के कम्पोजिट पैनल लगाए गए हैं
तथा डोरवेज पर स्टेनलेस स्टील के
पैनल लगाए गए हैं| इन कोचों पर एंटी ग्रैफिटी कोटिंग की गई है तथा सामान रखने वाली
रैंक को भी गददीदर बनाया गया है कोचों में लगे बायो-टॉयलेट पर एक खास तरह की कोटिंग
की गई है तथा डिब्बों में एल इ डी लाइट्स के साथ-साथ बड़े-बड़े डस्टबिन लगाए गए
हैं|
गतिमान एक्सप्रेस
भारतीय रेलवे
ने अपनी तकनीकी उन्नयन क्षमता का परिचय गतिमान एक्सप्रेस के निर्माण से प्रस्तुत
किया है| यह भारत की सबसे तेज गति से चलने वाली रेलगाड़ियों में से एक है, जो 160
किमी की रफ्तार से चलती है|
यह रेलगाड़ी
दिल्ली और आगरा के बीच 188 किमी की दूरी को मात्र 1 घंटे 40 मिनट में पूरा करती है
एव इस ट्रेन की शुरुआत 5 अप्रैल, 2016 को की गई थी| इस ट्रेन में पावर इमरजेंसी
ब्रेकिंग सिस्टम, ऑटोमेटिक फायर अलार्म, यात्रियों के लिए जी पी एस के साथ-साथ कोच
में स्लाईडिंग डोर जैसी
सुविधाए हैं|
इसके अलावा
हवाई जहाज के तर्ज पर ट्रेन होस्टेस और फ्री वाई-फाई, एल सी डी टी वी तथा बायो टॉयलेट
की भी सुविधा उपलब्ध है|
सी एन जी ट्रेन
देश के इस
ट्रेन इंजन का निर्माण चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्टरी (आई सी एफ) में हुआ है|
इस ट्रेन से रेलवे को कुल ऑपरेटिंग लागत में 50% की बचत होगी| डीजल और बिजली के
घटते-बढ़ते दामों के कारण सी एन जी एक सस्ता विकल्प साबित हो सकता है| इसके अलावा
यह पर्यावरण के अनुकूल भी है|
इस इंजन के
प्रयोग से जहरीली गैसे कम बनेगी| इससे कार्बन मोनोऑक्साइड में 90% तक की कमी आएगी|
इस ट्रेन के सफलतापूर्वक परिचालक के बाद सी एन जी आधारित अन्य ट्रेनों के लिए भी रास्ता
खुलेगा| भारत में प्राकृतिक गैसों का बड़ा भंडार है| रेलवे को इससे काफी बचत की
उम्मीद है|
देश की पहली
सी एन जी डेमू ट्रेन हरियाणा राज्य के रेवाड़ी से रोहतक तक 13 जनवरी, 2015 को
रवाना की गई| इसके साथ ही हरियाणा देश का पहला ऐसा राज्य बन गया, जहां सी एन जी
डेमू ट्रेन चलाई गई| कुल 8 डिब्बों वाली ‘74017 रेवाड़ी-रोहतक डेमू ट्रेन’ के रूप
में चलेगी|
मोनो
रेल
अमेरिका,
जर्मनी, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया एवं मलेशिया के बाद भारत विश्व में सातवां मोनो
रेल परिचालन करने वाला देश बन गया है| इसका शुभारंभ 1 फरवरी, 2014 को मुंबई में
चेंबूर से वडाला तक 8.93 किमी लंबे रूट पर किया गया| इसकी पूरी लंबाई 19.17 किमी
है| मुंबई मोनो रेल का निर्माण मलेशिया की स्कोमी इंजीनियरिंग कंपनी के सहयोग से
तथा भारत की लार्सन एंड टूब्रो द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है|
सेमी हाई स्पीड ट्रेन
आर्थिक
समीक्षा 2017-18 में 10 रूटो की पहचान की गई है| जिन पर 160 से 200
किमी/घंटे की रफ्तार वाली सेमी हाई स्पीड ट्रेन चलती है|
1.
दिल्ली -
आगरा
2.
दिल्ली -
चण्डीगढ़
3.
दिल्ली -
कानपूर
4.
नागपुर - बिलासपुर
5.
मैसूर - बेंगलुरु –चेन्नई
6.
मुम्बई - गोवा
7.
मुम्बई - अहमदाबाद
8.
चेन्नई - हैदराबाद
9.
नागपुर –
सिकन्दराबाद
10.
निजामुद्दीन –
दिल्ली-मेरठ
हायपरलूप वन ट्रेन
‘मेड इन
इंडिया’ की पहल के अंतर्गत दुनिया की सबसे तेज ट्रेन बनाने वाली कंपनी हायपरलूप वन
ने ‘हायपरलूप ट्रेन’ बनाने का
निर्णय लिया है|
कम्पनी का
दिल्ली-मुंबई रूट समेत कुल छह रूटों हर पर ‘हायपरलूप ट्रेन’ चलाने का प्रस्ताव है|
इस ट्रेन के शुरू होने के पश्चात दिल्ली-मुंबई की यात्रा महज 60
मिनट में तय हो सकेगी|
नई दिल्ली से
आगरा के बीच सेमी हाई स्पीड ट्रेन का ट्रायल 3 जुलाई, 2014 को किया गया, जो पूरी तरह सफल रहा| दिल्ली और
आगरा के बीच 178 किमी की दूरी 160 किमी/घंटे
की गति से ट्रेन ने केवल 99 मिनट में तय की|
देश के चार
महानगरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, एवं चेन्नई) को हाई स्पीड ट्रेनो से जोड़ने
हेतु हीरक चतुर्भुज (Diamond Quadrilateral) योजना का प्रारंभ किया गया है|
नवीनतम तकनीक वाले वैगन
सौर ऊर्जा आधारित कोच
भारतीय रेलवे
ने बिना वातानुकूलित वाले डिब्बों को सौर पैनल से युक्त करने की शुरुआत जून, 2018 में
की है| इन डिब्बो की छतों पर सोलर फोटोवोल्टिक पैनल लगाए जा रहे हैं, जिसका उपयोग
कर मोबाइल चार्जिंग, डिब्बों में लगे पंखे को चलाने में उपयोग किया जा सकता है|
इस प्रणाली
के उपयोग से यह अनुमान है कि 25 वर्षों में रु 3 करोड़ की बचत की जा सकेगी| इस
सोलर पैनल से प्रतिदिन 15 से 20 यूनिट बिजली उत्पादन किया जा सकेगा| ध्यातव्य
है कि यह प्रयोग रेलवे के भारतीय रेल के वैकल्पिक ईंधन संगठन के प्रयासों का नतीजा
है|
बायो टॉयलेट
भारतीय रेलवे ने रेल यात्राओं के दौरान शौचालय सुविधा
को उन्नत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए ‘बायो टॉयलेट’ की शुरुआत की है|
इसका विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन तथा भारतीय रेलवे द्वारा संयुक्त रूप से
किया गया है|
इस शौचालय के
नीचे बायो डाइजेस्टर कंटेनर लगे होते हैं, जिसमें एनेरोबिक बैक्टीरिया होते हैं,
जो मानव मल को पानी और गैसों में बदल देते हैं| बायो टॉयलेट प्रक्रिया में मल सड़ने
के बाद केवल मीथेन गैस और पानी शेष बच पाता है, जिसे बाद में पुनः चक्रित कर
शौचालय में प्रयोग किया जा सकता है|
शेष मीथेन
गैस को वातावरण में छोड़ दिया जाता है तथा दूषित जल को क्लोरिनेशन के बाद पटरियों
पर छोड़ दिया जाता है| ध्यातव्य है कि मार्च, 2018 तक भारतीय रेलवे द्वारा 125000
बायो टॉयलेट लगाए जा चुके हैं|
GPS आधारित ‘Fog Pass’ यंत्र
यह प्रणाली
केवल उन मार्गों पर उपयोग में लाई जाती है जहां बहुत अधिक धुंध तथा कोहरे से
ट्रेनों का परिचालन होता है| यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारतीय
रेलवे ने धुंध और कोहरे वाले ट्रेन रुटो पर जी पी एस आधारित ‘फोग पास’ को लगाने की
दिशा में कार्य कर रहा है| भारत में उत्तर, उत्तर-मध्य, उत्तर-पूर्व तथा उत्तर-पश्चिम
रेलवे मार्गों पर धुंध तथा कोहरे की समस्या सबसे ज्यादा है| इस यंत्र का उपयोग
ट्रेनों के लोको पायलटो (ड्राइवरों) द्वारा किया जाता है, जो इन्हें मौसम, धुंध एव
कोहरे की ऑडियो चेतावनी जारी करते हैं| इस यंत्र में स्टेशन की स्थिति चेतावनी
बोर्ड, सिग्नल, क्रॉसिंग फाटकों की जानकारी समाहित कर दी गई है|
रडार आधारित ‘त्रिनेत्र’ प्रणाली
भारतीय रेल
द्वारा खराब मौसम में दृश्यता कम होने के कारण होने वाली ट्रेन दुर्घटनाओं को कम
करने हेतु एक ‘रडार आधारित त्रिनेत्र’ प्रणाली का विकास किया गया है| इस प्रणाली
के उपयोग से खराब मौसम में इंजन चालकों को रेलवे ट्रैक साफ नहीं दिख पाने की
परेशानी से छुटकारा मिलेगा तथा उनकी दृश्यता बढ़ेगी|
यह उपकरण घने
कोहरे, भारी बारिश और रात के दौरान रेल इंजन के सुचारू संचालन में मदद करता है| यह
हाई रेजोल्यूशन आप्टिकल वीडियो कैमरा high-sensitivity
इंफ्रा रेड वीडियो कैमरा और रडार
आधारित मैपिंग प्रणाली के उपयोग से तैयार किया गया है| इस उपकरण में लगे ये तीनों हिस्से
इंजन चालक के लिए त्रिनेत्र (तीन आंख) का काम करेगा, क्योंकि उपकरण दौड़ते इंजन के
आगे के स्थान की इमेज चालक के सामने लगे कंप्यूटर पर दिखाने में सक्ष्म होगा|
भारतीय रेल वैकल्पिक ईंधन संगठन
रेल मंत्रालय
द्वारा गठित भारतीय रेल वैकल्पिक ईंधन संगठन एक ऐसी संस्था है, जो पर्यावरण अनुकूल
ईंधन, नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण अनुकूल तकनीक विकसित करने के लिए प्रयासरत है|
इस संगठन ने रेल पर वर्कशॉप में डीजल के स्थान पर सी एन जी/एल एन जी, एसिटिलीन/एल पी
जी के स्थान पर सी एन जी/एल एन जी के उपयोग को बढ़ावा दिया है| इसके अलावा भारतीय
रेल वैकल्पिक ईधन संगठन ने रेल लोकोमोटिव में बायोडीजल, रेल वर्कशॉप के छतों पर
सौर ऊर्जा, यात्री रेल और मालगाड़ियों की छतों पर सौर ऊर्जा, कचरे एवं जैव कचरे से
बिजली, हाइड्रोजन आधारित बैटरी तकनीक, जिओ थर्मल तकनीक और कचरे से ईधन के इस्तेमाल
को बढ़ावा दिया है|
यह संगठन
भारतीय रेल के ईधन के कुल खर्च में कमी लाने के लिए प्रयासरत है और साथ ही साथ सतत
विकास को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण अनुकूल ईधन तथा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत को
बढ़ावा देता है|
केंद्रीकृत यातायात नियंत्रण
केन्द्रीकृत
यातायात नियंत्रण द्वारा ट्रेनों के संचालन को यह नियंत्रित करने और संचालित करने
का कार्य किया जाता है| इसके जरिए हम सिग्नलो के कामों को अलग-अलग स्टेशनों से वितरित
ऑपरेशन करने के बजाय केन्द्रीकृत स्थानों से संचालन करते हैं| यह ऐसी नियंत्रण
प्रणाली है, जिससे ट्रेनों के संचालन के सही समय सारणी प्रबंधन, एक ही समय में एक
ही रूट पर 6 ट्रेनों के आवागमन को नियंत्रित कर समय और ऊर्जा की बचत करेगा|
इसके उपयोग
से गड़बड़ियों की सही समय पर वास्तविक जांच कर नियंत्रित द्वारा ऑनलाइन सुधार किया
जा सकता है| यह केंद्रीयकृत स्थान से ट्रेनों की योजना और संचालन को अनुमति देगा
तथा इसका लाभ माल एवं यात्री रेलगाड़ी दोनों को प्राप्त होगा| टूंडला भारत का पहला
केंद्रीकृत यातायात नियंत्रण प्रणाली रखने वाला स्टेशन होगा|
प्रोजेक्ट नीलगिरी
यह गूगल तथा
भारतीय रेलवे का साझा कार्यक्रम है, जो भारत में सबसे बड़े फ्री वाई-फाई अवसंरचना
विकास पर कार्य करेगा| गूगल, रेलटेल के साथ मिलकर लगभग 10 लाख
लोगों को प्रतिदिन इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाता है|
इस प्रोजेक्ट
के तहत भारतीय रेलवे लगभग 500 प्रमुख स्टेशनों पर 7 mbps डाउनलोड तथा 5
mbps अपलोड गति
सुविधा के साथ फ्री वाई-फाई उपलब्ध करा रहा है| इस प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले
मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन को शामिल किया गया| इसके पश्चात अन्य महानगरों के
स्टेशनों को इसमें शामिल किया गया|
ट्रेन में इन्फोटेनमेंट और फ्री वाई-फाई
सेवा
भारतीय रेलवे
ने वर्ष 2018 से नई दिल्ली-हावड़ा राजधानी में फ्री वाई-फाई
सेवा की शुरुआत की| इस ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्री यात्रा के दौरान 4
एमबी (MB)/सेकंड की गति से डाउनलोड की सुविधा प्राप्त कर
सकेंगे|
ट्रेन ट्रैकिंग की नई तकनीक
भारतीय रेलवे
द्वारा IIT कानपुर के सहयोग से वास्तविक समय पर
रेलगाड़ियों की स्थिति का पता लगाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है| इस कार्य
के लिए IIT कानपुर और भारतीय रेल ने मिलकर ‘प्रोजेक्ट
सिमरन’ की शुरुआत की है| ‘प्रोजेक्ट सिमरन’ के जरिए यात्री ट्रेनों के वास्तविक
स्थिति और गति को जान सकेंगे| इस प्रोजेक्ट से सूचना एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग को
भारतीय रेल में बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी| यह उपग्रह आधारित प्रणाली पर
कार्य करता है, जिसमें GPS की सहायता
से रेलगाड़ियों की स्थिति गति को SMS के
जरिए भी प्राप्त कर सकते हैं|
टिकट प्रणाली का आधुनिकीकरण
भारतीय रेल
ने अपनी प्रारंभिक काल से ही टिकट प्रणाली में लगातार सुधार किया है| वर्तमान समय
में सूचना प्रौद्योगिकी, तकनीकी के बढ़ते प्रसार ने इस व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण
परिवर्तन किए है| जिससे इस प्रणाली को आधुनिक बनाने में सहायता प्राप्त हुई है|
फोन द्वारा पेपरलेस टिकट
2014 में मुंबई में पेपरलेस अनारक्षित टिकट की
शुरुआत की गई थी, जिसे धीरे-धीरे अन्य शहरों में भी विस्तारित किया जा रहा है| इस
प्रक्रिया में यात्रियों को QR कोड
युक्त डिजिटल टिकट स्मार्टफोन के जरिए प्राप्त हो जाता है| इसके विकास से
यात्रियों को लंबी लाइनो में लगकर टिकट खरीदने के झंझट से मुक्ति प्राप्त होगी|
भारतीय रेलवे में तकनीकी उन्नयन PART 1
भारतीय रेलवे में तकनीकी उन्नयन PART 2
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