Jaiv plastic ke labh|जैव प्लास्टिक के लाभ
जैव प्लास्टिक मुख्य रूप से परम्परागत
प्लास्टिक के विकल्प के रूप में प्रयोग कि जाने लगी है तथा वर्तमान में और भविष्य
में इसके कई लाभ प्राप्त हो सकते हैं, जो निम्न हैं
1. जैव प्लास्टिक के उपयोग से कार्बनफुट
प्रिंटो को कम करने में सहायता मिलती है तथा यह ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में
भी कमी लाती है|
2. यह गैर-जैव अवक्रमणीय अपशिष्टो की मात्रा को
कम कर पर्यावरण हानि को कम करती है|
3. यह समुंद्र में प्लास्टिक प्रदूषण को कम
करने में सहायक होती है, क्योंकि परम्परागत प्लास्टिक निम्नीकरण न होने के कारण
समुद्र एवं नदियों में लम्बे समय तक मौजूद रहती है, परन्तु जैव प्लास्टिक
निम्नीकरण होने के कारण समुद्री प्रदूषण नहीं करती है|
4. यह नवीकरणीय कच्चे मालों की खपत नहीं करती
है तथा उत्पादन में उर्जा की बचत करती है, क्योंकि यह जीवाश्म स्रोतों और अनवीकरणीय
संसाधनों का उपयोग नहीं करती है|
5. जैव
प्लास्टिक के प्रयोग से कार्बन का उत्सर्जन कम होता है|
जैव प्लास्टिक तथा जैव निम्नीकरण
प्लास्टिक में अंतर
जैव प्लास्टिक या
जैविक प्लास्टिक, प्लास्टिक का एक प्रकार है, जिसे पेट्रोलियम से प्राप्त होने
वाले जीवाश्म ईंधन प्लास्टिक की बजाय शाकाहारी तेल, मक्का स्टार्च मटर स्टार्च या
माइक्रोबायोटा जैसे नवीकरणीय जैव ईधन स्रोतों से प्राप्त किया जाता है|
जबकि जैव निम्नीकरण प्लास्टिक ऐसे
प्लास्टिक होते हैं, जो
पर्यावरण में प्राकृतिक वायुजीवी (खाद्य)
तथा वायुजीवी (कचरा) के रूप में अपघटित हो जाते हैं| प्लास्टिक का जैव-निम्नीकरण,
पर्यावरण में सूक्ष्मजीवों को सक्रिय कर सम्पन्न किया जाता है, जो प्लास्टिक झिल्लियों
की आण्विक संरचना के
उपापचय द्वारा एक खाद्य सदृश मिट्टी वाले अक्रिय
पदार्थ का निर्माण करते हैं और पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होते हैं|
जैव प्लास्टिक मुख्य रूप से सिंगल यूज
प्लास्टिक उत्पादों जैसे प्लास्टिक बोतल, कप, प्लेट इत्यादि के रूप में प्रयोग की
जाती है| दूसरी और जैवनिम्नीकरण प्लास्टिक मुख्य रूप से पैकेजिंग खाद्य पदार्थों
और कृषि उत्पादों के क्षेत्र में प्रयोग की जाती है|
जैव प्लास्टिक के समक्ष उत्पन्न
चुनौतियां
हम जानते हैं कि जैव प्लास्टिक पेट्रोलियम के
स्थान पर जैव पदार्थों जिसमें स्टार्च, सेल्यूलोज, गन्ना, मक्का या मुख्य रूप से
अनाज से निर्मित होते हैं| अतः इसके सामने कई ऐसी चुनौतियां और प्रभाव है, जो इसके
उपयोग को बढ़ावा देने में अवरोधक का कार्य कर सकते हैं|
पर्यावरणीय प्रभाव
कई शोधकर्ताओं का मानना है कि बायोप्लास्टिक के
बढ़ते उपयोग से अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, क्योंकि अनाजों के
उत्पादन हेतु रासायनिक खादों के उपयोग के साथ-साथ ऑर्गेनिक पदार्थों को प्लास्टिक
में बदलने हेतु प्रयोग किए जाने वाले रासायनिक तत्वों के बढ़ते उपयोग से पर्यावरण
को नुकसान पहुंचने की आशंका है|
वनों की कटाई तथा क्रॉप लैण्ड का
विस्तार
बायोप्लास्टिक मुख्यतः गन्ना, मक्का, मटर, गेहूँ
इत्यादि के उपयोग से निर्मित होती है| अतः बायोप्लास्टिक के बढ़ते उपयोग से इनके
उत्पादन हेतु वनों को काटकर फसलों का उत्पादन किया जाएगा, जो वनों को कम कर क्रॉपलैण्ड
का विस्तार करेगा तथा वैश्विक स्तर पर कृषि उपयोग हेतु भूमि के विस्तार को बढ़ावा
मिलने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पढेगा|
ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि
7 दिसम्बर, 2018 को ‘एनवायर्नमेंट रिसर्च लैटर्स’
में प्रकाशित नॉन विश्वविद्यालय जर्मनी के अध्ययन के अनुसार जैव प्लास्टिक से
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि होने के आसार है, क्योंकि जैव प्लास्टिक
के अधिक उत्पादन के लिए ज्यादा खेतों की जरूरत होगी जिसके लिए जंगलों की कटाई होगी
और वैश्विक रूप से भू-उपयोग में भारी मात्रा में परिवर्तन होगा|
ध्यातव्य है कि जंगल मक्का और गन्ने की तुलना
में हर वर्ष कहीं ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है|
उत्पादन लागत अधिक होना
जैव प्लास्टिक की परम्परागत प्लास्टिक की तुलना
में ज्यादा उत्पादन लागत वाले होते हैं| कृषि उत्पादों को तथा अन्य कार्बनिक
उत्पादों को प्लास्टिक के रूप में परिवर्तित करने में उच्च तकनीकी तथा उत्पादन
लागत की जरूरत होगी| जैव प्लास्टिक के निर्माण परम्परागत प्लास्टिक की तुलना में
20-50% ज्यादा लागत का वहन करना पड़ता है|
प्रदूषण का खतरा
अगर जैव प्लास्टिक का उचित तरीके से समाधान
नहीं किया गया तो यह पर्यावरण में मौजूद रहकर तथा पुनर्चक्रिकरण (रिसाइकिल) की
प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं|
अगर पुनर्चक्रिकरण के दौरान इन्हें सही से
उपयोग नहीं किया जा सका तो सम्पूर्ण निर्मित प्लास्टिक कूड़े के ढेर में तब्दील हो
जाएगा| इसके अलावा जैव प्लास्टिक महासागरों के अपशिष्ट में कमी करेगा| इस बात पर
संशय बरकरार है, क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि ये स्वतः महासागरों में नष्ट हो जाए|
प्लास्टिक नियंत्रण हेतु बनाए गए
प्रमुख अधिनियम
पिछले दो दशकों से भारत ने प्लास्टिक के उपयोग
को नियंत्रित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं|
1. इसका पहला प्रयास 2011 में किया गया, जब सरकार
द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट (प्रबंधन और नियंत्रण) अधिनियम 2011 को लागू किया गया|
इस नियम में स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्लास्टिक के रिसाइकिल को बढ़ावा देने तथा जहां तक हो सके
इसके उपयोग को कम करने की अपेक्षा की गई है|
2. वर्ष 2016 में इस प्लास्टिक अपशिष्ट (प्रबंधन
और नियंत्रण) अधिनियम 2011 को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016 से प्रतिस्थापित
कर दिया गया तथा इस नियम के अनुसार प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई को 40
माइक्रोन से बढ़ाकर 50 माइक्रोंन किया गया|
इसके अलावा इस नियम का दायरा बढ़ाकर नगरपालिका
क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्रों तक कर दिया गया साथ-ही-साथ प्लास्टिक कैरी बैग के
उत्पादकों, आयातकों एवं इन्हें बेचने वाले वेडरों के पूर्व पंजीकरण के माध्यम से
प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के शुल्क संग्रह की शुरुआत की गई|
इस नियम के अनुसार प्लास्टिक थैलियों और कैरी
बैग का निर्माण करने वालों की जिम्मेदारी उसके कचरे को एकत्र करने की भी होगी| नए
नियम में प्लास्टिक की थैलियों, कैरी बैग और पैकेजिंग सामग्री पर उसके निर्माता का
नाम पता दर्ज करना अनिवार्य होगा तथा बिना नाम पते वाली प्लास्टिक थैलीयों की
बिक्री गैर-कानूनी होगी|
प्लास्टिक का विकल्प जैव प्लास्टिक
वर्तमान में जैव प्लास्टिक सम्पूर्ण प्लास्टिक
उत्पादन में 10% से भी कम योगदान करता है| परन्तु इसके विभिन्न प्रकार के उपयोगों
को देखते हुए तथा लाभो को देखते हुए इसका प्रयोग तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है|
परम्परागत प्लास्टिक बाजारों की तुलना में जैव
प्लास्टिक का बाजार बहुत सीमित है, परंतु पर्यावरण पर इसके पड़ने वाले सकारात्मक
प्रभावों और आर्थिक रूप से लाभदायक होने के कारण यह तेजी से प्रचलन में आने लगा है|
जैव प्लास्टिक के क्षेत्र में होने वाले नए शोधो
ने उच्च गुणवत्ता वाले प्लास्टिक का निर्माण करना शुरू किया है| इसके अलावा इस
प्लास्टिक के पर्यावरण, मानव, जीव जन्तुओं एवं प्रदुषण के दृष्टिकोण से ज्यादा
उपयोगी होने के कारण है परंपरागत प्लास्टिक का स्थापना बनने की ओर अग्रसर है|
परम्परागत प्लास्टिक के दुष्प्रभावों को देखते
हुए भारत में कई राज्यों; जैसे-बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि प्लास्टिक
के उपयोग पर प्रतिबंध लगाकर इसके अन्य विकल्पों को अपनाने की ओर अग्रसर है|
निष्कर्ष
पिछले तो 15-20
वर्षों में जैव प्लास्टिक एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है तथा इसने जीवाश्म
स्रोतों पर से निर्भरता कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया है तथा
इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक साबित हो रहा है| विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग तथा जैव प्लास्टिक के क्षेत्र में होने वाले शोधों
से भविष्य में इसके उपयोग के और बढ़ने की सम्भावना है|
जैव प्लास्टिक और जैव निम्नीकरण प्लास्टिक PART 1
Please do not enter any spam link in comment box.