Nagrikta sanshodhan vidheyak 2016 part 1|नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 PART 1
नागरिकता संशोधन विधेयक 2016
मानवता और क्षेत्रीय पहचान का संघर्ष
उत्तर-पूर्व राज्यों विशेषकर असम द्वारा लगाताए विरोध के बावजूद 8 जनवरी, 2019 को लोकसभा द्वारा नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को पारित कर दिया गया| इसमें पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यको को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है|
नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 को जुलाई, 2016 में सबसे पहले लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था, जिसका उद्देश्य उन शरणार्थियों को भारत में शरण प्रदान करता था, जो अपने गृहदेश में धार्मिक उत्पीडन के शिकार हो रहे हैं|
नागरिकता संशोधन विधेयक 2016
द्वारा नागरिकता अधिनियम 1955 में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं
तथा अब बिना प्रमाणिक और उपलब्ध दस्तावेज के आए हुए लोगों को भी अवैध प्रवासी नहीं
माना जाएगा तथा उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान कर दी जाएगी|
यह संशोधन विधेयक कुछ समय से चर्चा का विषय बना हुआ है तथा विशेष रूप से असम तथा बांग्लादेश से लगे उत्तर-पूर्वी राज्यों में विवाद का विषय है, इसी संदर्भ में जब संयुक्त संसदीय समिति में उत्तर-पूर्वी राज्यों का दौरा किया था, तब इन सभी राज्यों में कई जगह इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए गए थे|
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के प्रावधान
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के मुख्य प्रावधान निम्न है
1. इस विधेयक में पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, एवं बांग्लादेश) से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान शामिल किया गया है|
2. इसमें इस बात का भी प्रावधान है कि चाहे उनके पास उचित तथा जरूरी दस्तावेज रहे या न रहे फिर भी नागरिकता प्रदान की जाएगी| इन अल्पसंख्यक समुदायों में मुस्लिम धार्मिक समुदाय को शामिल नहीं किया गया है|
3. यह संशोधन विधेयक ‘अवैध प्रवासी’ की परिभाषा को परिवर्तित कर अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, फारसी और ईसाई को भी ‘अवैध प्रवासी’ नहीं मानेगा|
4. नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार, नैसर्गिक नागरिकता के लिए अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 माह से भारत में रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो| नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 में इस संबंध में नागरिकता अधिनियम की अनुसूची-3 में संशोधन किया गया है, ताकि वे 11 वर्ष की बजाय 6 वर्ष पूर्ण होने पर नागरिकता के पात्र हो सके|
5. इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि भारत के विदेशी नागरिक कार्ड धारक (ओवरसीज सिटीजन ऑफ़ इण्डिया -OCI) यदि किसी भी कानून का उल्लंघन करते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा|
भारत में नागरिकता की संकल्पना
भारत में संविधान के भाग-|| में अनुच्छेद-5 से 11 तक भारतीय नागरिकता के संबंध में प्रावधान किए गए हैं|
अनुच्छेद-11 के अंतर्गत संसद को नागरिकता के संबंध में विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई है, जिसके तहत संसद द्वारा भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पारित किया गया था| यह अधिनियम वर्तमान भारतीय नागरिकता संबंधित प्रावधान करता है, जिसमें जन्म द्वारा वंश परंपरा द्वारा पंजीकरण द्वारा देशीयकरण द्वारा और भूमि अर्जन द्वारा नागरिकता प्राप्ति के प्रावधान किए गए हैं|
जन्म से नागरिकता
कोई भी व्यक्ति का जन्म भारत में 26 जनवरी, 1950 के बाद हुआ हो| वह जन्म से भारत का नागरिक होगा| इसमें 1987 में एक प्रावधान जोड़ा गया कि जिसके अनुसार जन्म से नागरिकता के लिए व्यक्ति के जन्म के समय उसके माता-पिता में से किसी एक का भारत का नागरिक होना आवश्यक है|
वंश परंपरा द्वारा
कोई भी व्यक्ति जिसका जन्म 26 जनवरी, 1950 के बाद भारत के बाहर हुआ हो| वह कतिपय अपेक्षाओं के अधीन रहते हुए भारत का नागरिक होगा| यदि उसकी जन्म के समय उसका पिता भारत का नागरिक हो| माता की नागरिकता के आधार पर भी विदेश में जन्मे व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा किया गया है|
पंजीकरण द्वारा
निम्नलिखित
आधारों पर कोई व्यक्ति पंजीकरण द्वारा भारतीय नागरिकता ग्रहण कर सकता है
1. पंजीकरण हेतु आवेदन करने की तिथि से 6 माह (अब 5 वर्ष) पूर्व भारत में निवास करने वाला व्यक्ति|
2. ऐसा व्यक्ति जिसका जन्म भारत में हुआ हो, किंतु जो भारत से बाहर किसी अन्य देश में निवास कर रहा हो|
3. जो महिलाएं भारतीय नागरिक पुरुषों से विवाह कर चुकी है या करने वाले हैं| राष्ट्रमंडल देशों के ऐसे नागरिक जो भारत में रहते हैं या भारत सरकार के नौकरी करते है|
देशीयकरण द्वारा
कोई भी व्यक्ति जो व्यस्क है और 10
वर्ष से भारत में निवास कर रहा है| भारत सरकार से देशीयकरण का प्रमाण-पत्र प्राप्त
कर भारत का नागरिक बन सकता है|
भूमि के अर्जन द्वारा
यदि भारत सरकार द्वारा किसी नए भू-भाग को अर्जित कर भारत में उसका विलय किया जाता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को स्वतः भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है|
कौन है अवैध प्रवासी?
नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार अवैध प्रवासी एक ऐसे व्यक्ति को माना जाएगा, जो बिना वैध पासपोर्ट के भारत में प्रवेश कर जाता है| इसके अलावा वीजा परमिट की समाप्ति के पश्चात भी देश में रहता हो|
इसके साथ-साथ ऐसे प्रवासियों को भी अवैध माना जाएगा, जिसने आव्रजन प्रक्रिया के लिए झूठे या गलत दस्तावेजों का उपयोग किया है|
भारत में अवैध प्रवासी से संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु विदेशी अधिनियम 1946 और पासपोर्ट एक्ट 1920 को दृष्टिगत किया जाता है| ये दोनों अधिनियम केंद्र सरकार को यह शक्ति प्रदान करते हैं कि वह भारत में प्रवासीयों के प्रवेश, निर्गमन और निवास का विनियमन करें|
नागरिकता संशोधन विधेयक की आवश्यकता
भारत को अपने पड़ोसी देशों के ऐसे व्यक्तियों
को जो सामाजिक, धार्मिक तथा अन्य तरीके से उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं, उन्हें
भारत में शरण प्रदान करने के उद्देश्य से इस नागरिकता अधिनियम में संशोधन करना
पड़ा|
इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने पार्टी को घोषणा-पत्र में पड़ोसी देशों से उत्पीड़ित हिंदुओं को भारत में शरण और नागरिकता प्रदान करने की घोषणा की थी| इस संशोधन बिल को लाने के पीछे एक उद्देश्य भी था नैसर्गिक नागरिकता के लिए अप्रवासी व्यक्तियों को आवेदन के लिए भारत में 11 वर्ष के स्थान पर 6 वर्ष निवास करना पड़े|
इस विधेयक को लाने के लिए एक अन्य उददेश्य बांग्लादेश के अवैध हिंदू प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है और यही असम में इसके विरोध का कारण भी है| साथ ही अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले कुछ अल्पसंख्यक समुदायों के अवैध प्रवासी को भारतीय नागरिकता प्रदान करना भी है|
विधेयक के विरोध का कारण
संविधान में वर्णित समानता के अधिकार का उल्लंघन
चुकी यह विधेयक मुस्लिम अवैध प्रवासियों को
धार्मिक आधार पर भारत की नागरिकता प्राप्त करने से रोकता है| अतः इसके विरोधीयो का
मानना है कि यह संविधान के अनुच्छेद -14 में वर्णित समानता के अधिकारों का
उल्लेख करता है| भारतीय संविधान के
अनुच्छेद -14 में वर्णित समानता का अधिकार भारतीय नागरिको
एवं अन्य देशों के नागरिकों को समान रूप से समानता का अधिकार प्रदान करता है|
ओ सी आई कार्ड निरस्तता के आधार पर
इस संशोधन बिल में किसी भी सामान्य कानून के उल्लंघन पर भी ओ सी आई (ओवरसीज सिटिजन आफ इंडिया) पंजीकरण को रद्द करने का प्रावधान शामिल किया गया है| जैसे- नो पार्किंग जोन क्षेत्र में कार पार्किंग करने पर या सड़क पर लाल बत्ती पार कर जाने पर| अतः यह ओ सी आई पंजीकरण को रद्द करने का व्यापक आधार तैयार करता है|
जबकि इसके पहले नागरिकता अधिनियम 1955
में ओ सी आई पंजीकरण तभी रद्द करने का प्रावधान था, जब किसी कार्ड धारक को 2
वर्ष या उससे अधिक की सजा मिले या उसके ओ सी आई पंजीकरण के 5 वर्ष पूर्ण हो
चुके हो|
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