हड़प्पा सभ्यता क्या है?
हड़प्पा सभ्यता क्या है (Harappa Sabhyata Kya Hai), आज कुछ लोग गाँवों में रहते हैं तो कुछ नगरों (शहरों) में दोनों ही जगह के रहन-सहन में। कुछ कुछ समानताएँ होती है तो कुछ अन्तर भी। क्या आपको पता है कि आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व भी भारत में नगर थे।
इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि सर्वप्रथम 1921 में पाकिस्तान के शाहीवाल जिले के हड्प्पा नामक स्थल से इस सभ्यता की जानकारी प्राप्त हुई।
1922 में जब मोहनजोदड़ो एवं अन्य स्थलों का पता चला तब यह मानकर कि सिन्धु घाटी के इर्द-गिर्द ही इस सभ्यता का विस्तार है, उसका नामकरण ‘सिन्धु घाटी की सभ्यता’ किया गया। परन्तु यह नाम भी इस सभ्यता के सही-सही भौगोलिक परिप्रेक्ष्यों में अपर्याप्त है। अत: इसका उपयुक्त नाम हड़प्पा ही है क्योंकि किसी लुप्त सभ्यता का नामकरण प्राय: उस नाम के ऊपर कर दिया जाता है। जहाँ से सबसे पहले इस सभ्यता से सम्बन्धित सामग्री मिलती है।
वर्तमान में हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल 1,2,99,600 वर्ग मील है। इसका विस्तार पश्चिम में सुत्कगेन्डोर के मकरान तट से पूर्व में आलमगीर पुर (मेरठ जिला) एवं उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक था। सबसे उत्तर में गुमला एवं सबसे दक्षिण में सूरत जिले का हलवाना इसमें सम्मिलित हैं।
हड़प्पा सभ्यता क्या है (Harappa Sabhyata Kya Hai)
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन प्राचीन नगरों का निर्माण लगभग आजकल की सुनियोजित नगर-निर्माण योजना की तरह होता था। ऐसा उस समय के अवशेष बताते हैं। विश्व की प्राचीन नगर सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ।
नदी के किनारे होने के कारण खेती के लिए पानी की उपलब्धता ने अधिक अन्न उत्पादन में मदद की अधिक अन्न उत्पादन ने व्यापार को बढ़ावा दिया। जिससे नगरों का विकास संभव हो सका। व्यापार के लिए जलमार्ग सुलभ था। साथ ही नदी मार्ग से व्यापार सस्ता, आसान तथा सुरक्षित था।
नगरीय जीवन में अब कृषि की अपेक्षा अन्य काम-धन्धों को अधिक महत्व मिला। इन काम-धन्धों के विकास के लिए प्राकृतिक कच्चे माल की उपलब्धता तथा उससे निर्मित वस्तुओं ने नगरीय जीवन को और उन्नत बनाया। फलस्वरूप विश्व में पहली बार अलग-अलग नदियों के किनारे नगरीय सभ्यता का विकास हुआ, जिनमें सिन्धु नदी के तट पर विकसित हुई हड़प्पा सभ्यता।
हड़प्पा सभ्यता (लगभग 2500 ई०पू०- 1520ई०पू० )
सन् 1921 की बात है जब भारत में अंग्रेजों का राज था। इसी वर्ष पुरातत्वविदों ने पंजाब प्रांत में हडप्पा नामक स्थल की खोज की। इस स्थल से प्राप्त अवशेषों के अध्ययन से पुरातत्वविदों को ज्ञात हुआ कि यह एक नगरीय सभ्यता के अवशेष है।
इसी प्रकार सिन्ध प्रान्त में एक और गाँव मिला जिसको लोग मोहनजोदड़ो मोहनजोदड़ो का मतलब है – थे। मृतकों का टीला यहाँ से भी नगरीय सभ्यता केअवशेष प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा नामक स्थल से इस सभ्यता के अवशेष सबसे पहले मिले थे इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता कहते हैं।
पुरातत्वविदों ने इन स्थलों की विस्तृत खुदाई की तो नीचे दबा हुआ पूरा का पूरा शहर निकल आया। नगर ही नगर धीरे-धीरे आगे और खोज हुई। कई जगहों पर खुदाई की गई तो पता चला कि उस समय एक नहीं, दो नहीं, कई नगर थे।
ये नगर सिन्धु नदी और उसकी सहायक नदियों की घाटी में बसे हुए थे। इस सभ्यता के कुछ क्षेत्र आज पाकिस्तान में हैं। भारत में रोपड़ (पंजाब), कालीबंगा (राजस्थान), लोथल (गुजरात) तथा दायमाबाद (महाराष्ट्र) इस सभ्यता से संबंधित मुख्य पुरास्थल है।
नगरों की विशेषताएँ
हडप्पा कालीन नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के आधार पर किया गया था। सड़कें चौड़ी थी तथा वे छोटी-छोटी सड़कों एवं गलियों से जुड़ी थी। सड़के पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थी।
ड़कों के किनारे पक्की नालियों बनी थी। हर घर की नाली बड़े नालों से मिल जाती थी। हर नाली में हल्की सी ढाल होती थी ताकि पानी आसानी से बह सके। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरूक थे।
भवन निर्माण
उत्खनन में कई तरह की बड़ी-बड़ी इमारतें मिली है जो आयताकार थी। कई दो मंजिला घर थे, तो कुछ छोटे-छोटे घर थे। हडप्पा मोहनजोदड़ो एवं अन्य स्थलों की खुदाई से पता चलता है कि हडप्पा कालीन भवनों का निर्माण एक सुनिश्चित योजना के अन्तर्गत किया गया था।
प्रत्येक घर के बीच में एक आँगन होता था। आँगन के चारों ओर कमरे बने हुए थे। प्रत्येक घर में रसोईघर शौचालय तथा स्नानघर का उचित प्रबन्ध था। दो मंजिला मकान में ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों बनी हुई थीं।
दीवारे पकी ईटो की बनी हुई है। इससे पता चलता है कि उस समय ईट पकाने की भट्टियाँ रही हडप्पा सभ्यता के नगरों की खुदाई में के अलावा बड़े-बड़े गोदाम मिले है। आसपास के गाँवों से अनाज इकट्ठा करके इन्हीं गोदामों में रखा जाता रहा होगा। घरो और गोदामों के अलावा मोहनजोदड़ों में एक बड़ा सा पक्का स्नानागार मिला है। इसके चारों तरफ कमरे बने हुए थे।
रहन-सहन
चावल, गेहूँ और जी हड़प्पा वासियों के मुख्य भोज्य पदार्थ थे। ये लोग सूती एवं ऊनी दोनों प्रकार को वस्त्र पहनते थे। यहाँ के निवासी गेहूँ, जौ, कपास, मटर, तिल और चावल की खेती करते थे। ऊँचे कन्धों वाले बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेंड, सुअर, हाथी और ऊँट इनके पालतू पशु थे हार, कंगन, पाजेब (पायल), बाली. अंगूठी उनके प्रिय आभूषण थे। मनका बनाने का कारखाना चन्हूदड़ों से प्राप्त हुआ है।
देवी-देवता
मिट्टी की मूर्ति उन लोगों की देवी की मूर्ति थी। पत्थर के चौकोर पट्टे पर एक आकृति के सिर पर जैसे के सींग का चित्र है। उसके चारों तरफ कई जानवर बने हैं। यह कोई देवता होंगे।
इसके अलावा कुछ मुहरों पर पीपल की पत्तियाँ और साँप की आकृतियों जैसी भी बनी मिली हैं। शायद वे इन सबकी पूजा करते थे। इन बातों का हम अन्दाजा लगा सकते हैं, पक्की तरह से नहीं कह सकते।
इतिहासकारों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के धर्म की चार मुख्य विशेषताएँ थीं- मातृ शक्ति की उपासना, शिव की पूजा, वृक्ष पूजा और पशु पूजा।
काम धंधे
खुदाई में ताँबे और कोंसे की बनी हुई कुल्हाड़ी, दर्पण, आरी, कंचियाँ, उस्तरा प्राप्त हुए हैं। इसका मतलब यह हुआ कि सिन्धु घाटी के लोग जमीन में से धातु निकालने और उसे साफ करने तथा गला कर 8 चीजें बनाने के तरीके से परिचित थे।
काँसा- ताँबा और जस्ता को मिलाकर बनाई गई धातु है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि धातु की चीजें बनाने के साथ-साथ लोग पत्थर के औजार भी बनाया करते थे। इसका कारण शायद यह था कि तौबा व काँसा जैसी धातुएँ पत्थर की तुलना में बहुत ज्यादा मजबूत नहीं थीं। ये धातुएँ इस तार को खीचने से बैल का हर जगह आसानी से मिल भी नहीं पाती थी इसीलिए लोग कई औजार पहले की तरह पत्थर के ही बनाते रहे।
उस समय चक्के का इस्तेमाल मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए भी होने लगा था। इसलिए पहले की तुलना में बहुत अच्छे किस्म के बर्तन बनाए जाने लगे थे।
हड़प्पा के नगरों में बहुत से कारीगर रहते थे। नगर के लोग अपनी जरूरत की सब चीजें घर पर नहीं बनाते थे। अलग-अलग चीजों को बनाने वाले अलग-अलग कारीगर थे जो अपनी चीजें बनाकर दूसरों को बेचते थे।
वस्तु विनिमय
हडप्पा सभ्यता के लोग एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तुओं को ले-देकर व्यापार करते थे। इसके लिए ये रुपये या सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। उस समय रुपये पैसे का प्रचलन नहीं था।
हडप्पा के नगरों से पत्थर हाथी दाँत, धातु एवं मिट्टी की बनी वस्तुएँ मिली हैं। कुछ विद्वान सोचते हैं कि ये वास्तव में व्यापारियों की मुहरें थीं। ये विभिन्न आकार की है। इन मुहरों पर आदमी की आकृतियाँ कुछ पर जानवरों की पौधों की और कुछ पर बर्तनों की आकृतियाँ बनी हुई है।
व्यापारी जब एक जगह से दूसरी जगह सामान भेजते थे तो सामान बाँधकर उस पर गीली मिट्टी छापते होंगे और गीली मिट्टी पर अपनी मुहर से छाप बना देते रहे होंगे ताकि उनके सामान की पहचान बनी रह सके।
तौल और नाप के लिए बटखरे और पैमाने का प्रयोग करते थे। ऐसी मुहरें दूसरे देशों में भी पाई गई है खासकर मेसोपोटामिया (इराक) में लगता है कि उन दिनों इराक और हड़प्पा के नगरों के बीच व्यापार होता था।
लिखावट
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर संकेत के रूप में लेख लिखे है जिससे उनके अक्षर चित्रों जैसे लगते हैं। विद्वान आज भी इस लिखावट को पढ़ नहीं पाए हैं इसलिए हड़णा सभ्यता को आय ऐतिहासिक युग के अन्तर्गत रखते हैं। खुदाई से मिले अवशेषों के आधार ही हम इस सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
हड़प्पा संस्कृति के लोथल क्षेत्र में मिले बन्दरगाह के अवशेषों से पता चलता है कि ये लोग नदी या समुद्र से व्यापार करते थे। लोथल मुख्यतः व्यापारिक नगर रहा होगा क्योंकि यहाँ से बंदरगाह (गोदी), मुहरे तथा गोदाम के अवशेष मिले हैं।
नगर निर्माण योजना के साथ-साथ अन्य विशेषताओं के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी शासन व्यवस्था काफी सुदृढ रही होगी। युद्ध संबंधी अस्त्र-शस्त्रों के न मिलने के कारण कहा जा सकता है कि राज्य में शांति एवं सुव्यवस्था थीं।
नगरों का खत्म होना
आज से चार-पाँच हजार साल पहले हड़प्पा में नगर बने हुए थे। ये नगर लगभग एक हजार साल तक बने रहे. फिर किसी कारण से नष्ट हो गए और मिट्टी में दब गए क्या कारण हो सकते हैं बाढ़, भूकम्प, महामारी आक्रमण आग या फिर आर्यों का आना।
नगर निर्माण कला का विकास इस सभ्यता की विशिष्ट देन है। यहाँ के लोगों ने घर बनाने में पकी ईंटों का प्रयोग किया। पानी निकास हेतु नालियों की समुचित व्यवस्था सर्वप्रथम हड़प्पा वासियों ने की सभ्यता के नगरों के खत्म होने के बाद कई सौ सालों तक भारत में कोई नगर नहीं बसे।
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