Bharat me gramin pravashan part 1|भारत में ग्रामीण प्रवासन के प्रभाव PART 1
भारत में ग्रामीण प्रवासन के प्रभाव
भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही नगरीकरण में वृद्धि और ग्रामीण जनसँख्या में क्रमश: कमी की प्रवृति बनी हुई है | जिसका एक प्रमुख कारन ग्रामीण क्षेत्रो में शहरी क्षेत्रो की ओर होने वाला प्रवासन है |
वर्ष 2001-11 के दशक
में ग्रामीण जनसँख्या में जहा 12.22% की वृद्धि दर्ज की गई है | वही शहरी जनसँख्या
में वृद्धि. 31.8% रही है और यह वृद्धि न केवल शहरों में
जन्म दर के बढ़ने का परिणाम है,बल्कि इसके पीछे ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर
लोगों का पलायन और प्रवासन एक महत्वपूर्ण कारक है| भारत का शहरी जनसंख्या जो वर्ष 1951 में 17% थी| वह वर्ष 2025 तक
42% तक होने की संभावना लगाई जा रही है|
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल
संख्या में शहरी जनसंख्या 31.2% परसेंट तथा ग्रामीण जनसंख्या 68.9% है|
जनसंख्या
के किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर बसने को प्रवास
कहा जाता है| प्रवास में लोगों का कुछ दूरी को तय करना तथा उनके आवास में परिवर्तन
अनिवार्य है|
प्रवास—
भारतीय
जनगणना में प्रवास की गणना निम्नलिखित दो आधार पर की जाती है___
1. जन्म
का स्थान
यदि जन्म का स्थान गणना के स्थान से भिन्न है|
2. निवास
का स्थान
यदि निवास का पिछला स्थान गणना के स्थान से भिन्न है|
देशीय व अंतर्देशीय आधार पर भी प्रवास को दो
भागों में बांटा गया
अंतरराष्ट्रीय प्रवास जिसके अनुसार लोग अंतरराष्ट्रीय
सीमाओं को पार करने के पश्चात देश से बाहर जाते हैं या अन्य देशों से भारत में प्रवेश करते हैं|
दूसरा अंतरराष्ट्रीय प्रवासी के अनुसार लोग देश के भीटर ही की एक क्षेत्र
से दूसरे क्षेत्र की ओर प्रवास करते हैं|
स्थानांतरण की दिशा के आधार पर प्रवास चार
प्रकार के हो सकते हैं----
ग्राम से नगर
नगर से नगर
ग्राम से ग्राम
नगर से ग्राम
प्रभास
के संदर्भ में भारत में यह मान्यता है कि भारत की जनसंख्या में न्यूनतम गतिशीलता
है अर्थात भारत में बहुत कम लोग प्रवास करते हैं|
प्रवास
के कारण
प्रवास कई कारणों से होता है जिनमें आर्थिक,
सामाजिक तथा राजनीतिक कारण मुख्य है जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्न है---
आजीविका
आजीविका ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोगों कृषि
पर निर्भर होते हैं, जिससे एक निश्चित जनसंख्या को ही आजीविका fey पाती है, हालांकि कुछ लोगों लघु एवं
कुटीर उद्योगों से अपनी आजीविका चलते है | इसके विपरीत नगरो में उद्योग
,परिवहन,व्यापार तथा कई अन्य आर्थिक क्षेत्रो में रोजगार उपलब्ध होता है तथा
नगर,ग्रामीण जनसँख्या के लिए चुम्बक का कार्य करते है|
शिक्षा
ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का विशेषतःउच्च शिक्षा
का अभाव रहता है|अतः शिक्षा के इच्छुक व्यक्तियों शहरों में आकर रहना शुरू कर देते
हैं तथा शिक्षा पूरी करने के पश्चात भी लोग प्रायः शहरों में रहने लगते हैं|
सुरक्षा की कमी
राजनैतिक तथा जातीय दंगों के कारण लोग अपने घरों
को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर प्रवास करते हैं| देश के कुछ इलाकों में गड़बड़ी
के कारण पिछले कुछ वर्षों में बहुत से लोग अपने जन्म स्थान को छोड़कर अन्य क्षेत्र
में प्रवेश कर गए हैं|
विवाह
प्रवास
का एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है, प्रत्येक लड़की को विवाह के बाद अपने घर जाना
पड़ता है, जिससे पूरी स्त्री जनसँख्या को प्रवास करना पड़ता है|
अपकर्ष तथा प्रतिकर्ष कारक
नगरों में उद्योग, परिवहन, व्यापार तथा अन्य
व्यवस्थाओं में आजीविका के बड़े साधन होते हैं, और वहां पर आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध
होती है| इसलिए नगर प्रवासी जनसंख्या को आकर्षित करते हैं| यही अपकर्ष कारक कहलाता
है| जब लोगों को जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध नहीं होते हैं, तो वह किसी नगर के
लोग प्रवास करते हैं|
इसके
अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन एवं सार्वजनिक सुविधाओं के अभाव के कारण भी
लोग गावो को छोड़कर नगरों में चले जाते हैं| इसके अलावा लोग प्रतिकर्ष कारको से भी प्रवास करते हैं| गरीबी, भुखमरी, बाढ़
सूखा, चक्रवाती, तूफान, भूकंप, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं, युद्ध, स्थानीय
संघर्ष भी प्रवास के लिए अतिरिक्त प्रतिकर्ष पैदा करते हैं|
ग्रामीण प्रवास और कृषि
भारत
के ग्रामीण क्षेत्रों की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है तथा यहां की लगभग 50%
जनसंख्या कृषि और संबंधित क्षेत्रों पर आधारित है एवं देश जीडीपी में कृषि का
योगदान 14% के आसपास है| भारत की ग्रामीण जनसंख्या
के रूप में 68.९% अर्थात कुल जनसंख्या का 83.37 करोड़ लोग गांवों में निवास करते हैं तथा कुल ग्रामीण जनसंख्या में 66.2%
पुरुष
और महिला 81.6%
महिला जनसंख्या कृषि कार्यों में ही संलग्न है |
सरकार
द्वारा प्रस्तुत एक आंकड़े के अनुसार भारत के गांवो से प्रतिवर्ष लगभग 2 मिलियन लोग
गांव से शहरों की ओर पलायन करते हैं| आंकड़ों के अनुसार 2001 से अभी तक करीब 22
मिलियन लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की
ओर पलायन कर चुके हैं|
परंतु
इतना बड़ा क्षेत्र 50 परसेंट होने के बावजूद यह लोगों को पर्याप्त रोजगार देने में
असफल रहा है तथा भारत में कृषि की निम्न
उत्पादकता, मौसमी बेरोजगारी तथा कृषि पर जनसंख्या के उच्च दबाव ने लोगों की कृषि
से पलायन करने को मजबूर कर दिया है |
कृषि
क्षेत्र की अनिश्चितता, फसलों का नुकसान तथा ऋणग्रस्तत के कारण कृषि अब ग्रामीण
क्षेत्रों में लाभ का सौदा नहीं रही है| इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से
लोगों का पलायन बड़ी तेजी से शहरों की ओर हो रहा है |
ग्रामीण प्रवास राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की रिपोर्ट
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने वर्ष
2007- 08 में भारत पर प्रवास नामक अपनी 64 वीं रिपोर्ट जारी की थी| यह रिपोर्ट
भारत में रोजगार ,बेरोजगारी, आवासन तथा अन्य प्रवास के कारकों पर आधारित थी, जिसके
मुख्य तथ्य निम्न है---
1.
भारत में प्रवास की दर शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा है| शहरी
क्षेत्रों में जहां इसकी दर 35% थी वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 26 परसेंट है|
2.
भारत में लगभग 29 परसेंट व्यक्ति उल्लेखनीय नगरीय और पुरुष महिला विभेदको सहित
प्रवासी माने गए|
3.
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासीत परिवारों के 78 परसेंट और नगरीय क्षेत्रों में प्रवासित
परिवारों के 72 परसेंट का पिछला सामान्य निवास स्थान राज्य के भीतर ही था|
4.
ग्रामीण और नगरीय दोनों क्षेत्रों में अधिकांश परिवार रोजगार संबंधित कारणों से
प्रवासित हुए थे| ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 55% परिवार और नगरीय क्षेत्रों में
67% परिवार रोजगार संबंधित कारणों से प्रवासित हुए थे|
5.
इस रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण प्रवास को सर्वाधिक रोजगार निर्माण क्षेत्र में
प्राप्त होता है तथा लगभग 41.6% ग्रामीण
प्रवासियों को शहरों में इस क्षेत्र में रोजगार मिलते हैं| जबकि संरचना क्षेत्र
17% परिवहन 16.8% व्यापार 7.8% तथा खनन उद्योग में 1.3% ग्रामीण प्रवासी रोजगार
प्राप्त करने में सफल होते हैं|
6.
ग्रामीण और नगरीय दोनों क्षेत्रों में परिवारों के प्रवसन में ग्रामीण क्षेत्रों
से प्रवासित हुए परिवारों की प्रधानता थी| लगभग 57% नगरीय प्रवासी परिवार ग्रामीण
क्षेत्रों से प्रवासीत हुए थे, जबकि 29% ग्रामीण प्रवासित परिवार नगरीय क्षेत्र से
प्रवासित हुए थे |
7.
ग्रामीण और नगरीय दोनों क्षेत्रों में महिला प्रवसन दर की तुलना में पुरुष प्रवसन
दर निम्नतर थी| ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 48% महिलाएं प्रवासी थी जबकि पुरुष
प्रवसन दर केवल 5% थी और नगरीय क्षेत्रों मे पुरुष प्रवासन दर महिला
प्रवसन दर 46% की तुलना में लगभग 26% थी
8.
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवसन दर अनुसूचित जनजाति के बीच निम्नतम लगभग 24% थी और
यह सामाजिक वर्ग “अन्य में वर्गीकृत” के बीच अधिकतम लगभग 28% थी|
प्रवास के परिणाम
प्रवास
के अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के परिणाम होते हैं| इनमें आर्थिक, जनाकीकिय
सामाजिक तथा पर्यावरणीय परिणाम अधिक महत्वपूर्ण हैं-
आर्थिक परिणाम
बहुत से लोग आर्थिक लाभ के लिए प्रवास करते हैं
तथा प्रवासी धन कमाकर अपने परिवारों की आर्थिक सहायता करते हैं| इस आर्थिक सहायता
का उपयोग भोजन, ऋण, अदायगी, स्वास्थ्य, विवाह, शिक्षा, कृषि इत्यादि में किया जाता
है| बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा आंध्र, प्रदेश हिमाचल, प्रदेश इत्यादि में हजारों निर्धन गांवों की अर्थव्यवस्था
प्रवासन से चलती है|
जनांकिकीय परिणाम
प्रवास
के कारण देश के अंदर जनसंख्या के वितरण से जनांकिकीय असंतुलन पैदा हो जाता है|
ग्रामीण इलाकों से युवा आयु दक्ष एवं कुशल
लोगों द्वारा नगरों की ओर प्रवास करने से ग्रामीण जनांकिकीय संगठन का प्रतिकूल
प्रभाव पड़ता है| जैसे उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पूर्वी महाराष्ट्र में
होने वाला ब्रह्मा प्रवास ने इस राज्यों की आयु एवं लिंग संरचना में गंभीर असंतुलन
पैदा कर दिया है|
जलवायु प्रवासी(क्लाइमेट माइग्रेंट )
विश्व
के कई शोधकर्ताओं द्वारा यह बादशाह में लाई गई है कि जलवायु में होने वाले
परिवर्तन से दक्षिण, दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में कृषि उत्पादकता के कम होने
की संभावना है| इसके साथ-साथ इन क्षेत्रों में बाढ़ और सूखे की संभावना काफी
ज्यादा व्यक्त की गई है|
जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2025 तक अनाज के
उत्पादन में 2.5% से 10% तक की कमी होने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है| इस
कारण बहुत बड़ी संख्या में लोगों के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में प्रवास की
संभावना व्यक्त की जा रही है|
बदलते
जल वायु पृथ्वी तथा वैश्विक उष्मन के कारण इन क्षेत्रों के लोगों को विपरीत मौसम
की परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जोकि प्रवासन को बढ़ावा देगा| इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग सूखा, बाढ़, निम्न उत्पादकता, प्रतिकूल मौसम दशाओं
के कारण उत्पन्न समस्याओं जैसे मरुस्थलीकर, वनोन्मूलन, मृदा अपरदन एवं अन्य कारणों से अपने क्षेत्रो
को छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे|
सामाजिक परिणाम
प्रवासी लोग सामाजिक परिवर्तन के अच्छी माध्यम
होते हैं, क्योंकि वे नवीन प्रौद्योगिकी, परिवार- नियोजन, बालिका शिक्षा आदि के
संबंध में नए विचारों का प्रसार करते हैं तथा प्रवास से विविध संस्कृतियों का
मिश्रण होता है, जिससे संकीण विचारों के भेदन तथा लोगों के मानसिक छितिज को
विस्तृत करने में सहायता मिलती है|
पर्यावरणीय परिणाम
बड़ी संख्या में लोग ग्रामीण से नगरी इलाकों की
ओर प्रवास करते हैं, जिससे नगरों में भीड़ बढ़ जाती है और आधारभूत ढांचे पर
प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| इससे मलिन बस्तियों एवं छुद्र कालोनियों का विस्तार
होता है और नगरीय पर्यावरण का प्रदूषण होता है|
इस
भीड़ से प्राकृतिक संसाधनों का प्रतिशोषण होता है और जल की कमी उसका प्रदूषण, वायु
प्रदूषण, वाहित मल के निपटान तथा ठोस कचरे के प्रबंधन जैसी अनेक गम्भीर पर्यावरणीय
समस्याए पैदा होती है|
इन सबके अलावा प्रवास महिलाओं के जीवन पर गहरा
प्रभाव डालता है| ग्रामीण इलाकों में पुरुष अपनी पत्नियों को छोड़कर रोजगार की
तलाश में नगरों की और प्रवास करते हैं, जिससे उन पर अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक
दबाव पड़ता है| शिक्षा एवं रोजगार के लिए स्त्रियों द्वारा प्रवास उनकी स्वायत्तता
और अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका बढ़ा देता है, परंतु उन्हें सुभेध भी बना देता है|
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