Nagrikta sanshodhan vidheyak part 2|नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 PART 2
नागरिकता संशोधन विधेयक पर संसदीय समिति
केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 के विपक्ष द्वारा किए जा रहे विरोध के कारण एक संयुक्त संसदीय समिति का संगठन किया था|
इस 30 सदस्यीय समिति के अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल हैं तथा इस समिति द्वारा 7 जनवरी, 2019 को अपनी मंजूरी प्रदान की गई हो|
समिति द्वारा पड़ोसी देशों के छह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के
संशोधन को अपनी सहमति प्रदान की गई है| इसके अलावा इस समिति ने इस बात से भी इंकार
कर दिया कि यह संशोधन बिल अनुच्छेद -14 और अनुच्छेद -25 का उल्लघन करता है|
पंथनिरपेक्षता के ढांचे के
खिलाफ
इस नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 में
केवल छह अल्पसंख्यक समुदायों हिन्दू, सिख, बौध्द, जैन, फ़ारसी, इसाई को भारतीय नागरिकता
प्रदान करने का प्रावधान ही शामिल है|
इसके अलावा यह संशोधन बिल अन्य अल्पसंख्यक
समुदायों; जैसे- मुस्लिम, यहूदी तथा अन्य समुदायों के नागरिकता की व्यवस्था नहीं
करता है| अत मानवता एवं भारत के पंथनिरपेछीय
ढांचे के आधार पर इसका विरोध किया जा रहा है, क्योंकि यह धार्मिक आधार पर लोगों के
साथ विभेद करता है, जो भारतीय संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है|
असम में विरोध
8 जनवरी, 2019 को नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पारित होने के पश्चात असम में इसका व्यापक विरोध किया जा रहा है तथा इस विधेयक के विरोध में असम में बंदी एवं बेमियादी आर्थिक नाकेबंदी की स्थिति पैदा हो गई है| अखिल असम छात्र संघ, असम साहित्य सभा समेत करीब दर्जनों संगठनों ने इस विधेयक का विरोध किया है|
असम में मौजूद राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन इसे असम समझौते का उल्लंघन मान रहे हैं, जिसके अनुसार 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी अवैध विदेशी नागरिकों को वहा से निर्वासित किया जाएगा| चाहे उनका धर्म कुछ भी हो|
यह विधेयक असम द्वारा जारी नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन के मूल तत्वों के खिलाफ है, जिसमें अवैध प्रवासियों को अवैध नागरिक माना गया है| इसके अलावा विरोधियों द्वारा बिना वैध कागजातों के नागरिकता प्रदान करने तथा 11 वर्ष की समयसीमा को घटाकर 6 वर्ष करने का भी विरोध किया जा रहा है|
असम के लोगों को डर है कि इस नागरिकता संशोधन बिल से असम में दोबारा प्रवासियों को बसाकर यहां की जनसंख्या को बढ़ाने का कार्य किया जाएगा|
इन सबके अलावा इस विधेयक को लेकर राज्य की ब्रह्मपुत्र घाटी और बराक घाटी के लोगों के बीच भी मतभेद की स्थिति बन गई है| बंगाली प्रमुख वाली बराक घाटी में ज्यादातर लोग इस विधेयक के पक्ष में हैं, जबकि ब्रह्मपुत्र घाटी में लोग इसके विरोध में हैं|
असम समझौता
‘असम समझौता’ वास्तव में असम के मूल निवासियों तथा वहां बाहर से विशेषतः पाकिस्तान और बांग्लादेश से आकर बसे प्रवासियों के बीच उत्पन्न संघर्ष का परिणाम हैं|
असम के स्थानीय लोगों में बाहरी लोगों से असुरक्षा की भावना पैदा हो गई| इसके फलस्वरूप 1971 के आसपास युवाओं और छात्रों द्वारा एक शक्तिशाली आंदोलन शुरू हो गया|
इस आंदोलन के पश्चात ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गढ़ संग्राम परिषद द्वारा घुसपैठियों की समस्या के समाधान की मांग की गई थी|
इन्होंने बांग्लादेशियों को वापस भेजने तथा वर्ष 1961 के बाद राज्य में आने वाले लोगों को वापस भेजने या अन्य कही बसानेकी मांग की|
इसी आलोक मैं अगस्त, 1985 में केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलनकारियों के बीच एक समझौता हुआ, जिसे असम समझौते के नाम से जाना गया|
असम समझौते के प्रावधान
असम समझौते के अंतर्गत 25 मार्च, 1971 के बाद असम आए सभी बांग्लादेशी हिंदू और मुसलमान नागरिकों को वापस भेजे जाने का प्रावधान किया गया|
वर्ष 1951-61 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और मतदान का अधिकार देने का फैसला किया गया|
इस समझौते के तहत वर्ष 1961-71 के बीच असम आने वालों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार प्रदान किए गए, परंतु उन्हें मतदान का अधिकार प्रदान नहीं किया गया|
समझौते की धारा -58 के अनुसार 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विदेशियों को कानून के अनुसार तात्कालिक और व्यवहारिक तरीकों से निष्कासित करने का प्रावधान शामिल था (अर्थात उन्हें नागरिक नहीं माना जाएगा)|
इन सभी के अलावा इस समझौते में असम के आर्थिक
विकास हेतु पैकेज प्रदान करने के साथ-साथ असमिया भाषी लोगों के संस्कृतिक, सामाजिक
और भाषाई पहचान की सुरक्षा के लिए विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय किए जाने का
प्रावधान शामिल था|
नागरिकता संशोधन विधेयक (2016) का राज्यों पर प्रभाव
नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 के पारित होने का प्रभाव न केवल असम पर पड़ेगा, बल्कि ऐसे सभी राज्य जिनकी सीमा बांग्लादेश, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान से लगती है, उन पर भी इसके प्रभाव पड़ेंगे|
असम में असम गण परिषद तथा ऑल असम स्टूडेंट संगठन के विरोध के पश्चात मेघालय में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी मेघालय डेमोक्रेटिक एलाइंस द्वारा भी इस बिल का विरोध किया जा रहा है तथा उन्हेंनें 6 वर्ष वाले प्रावधान का भी विरोध किया|
इसके अलावा राजस्थान, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य भी क्रमशः पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं| ऐसे में यहां भी नागरिकता और अवैध घुसपैठियों का मुद्दा उभरने की संभावना प्रतीत होती है|
ध्यातव्य है कि नागरिकता संशोधन विधेयक पर केंद्र सरकार के कदम का विरोध पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई संगठन और राजनीतिक दल कर रहे हैं| कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना तथा असम गण परिषद का मानना है कि यह विधेयक असम की क्षेत्रीयता, संस्कृति एवं अस्मिता का उल्लंघन करने वाले विधेयक हैं|
यह नागरिकता संशोधन अधिनियम विधेयक न केवल असम
बल्कि पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य
राज्यों में आए प्रवासियों को भी राहत प्रदान करेगा|
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में ऐसे सभी लोगों को बाहर करने का प्रावधान है, जो अवैध तरीके से 25 मार्च, 1971 के पश्चात रह रहे हैं फिर चाहे वो किसी भी धर्म एवं संप्रदाय से संबंधित हो|
ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर अर्थात एन आर सी भारतीय नागरिकों के नाम वाला रजिस्टर है, जो वर्ष 1951 में तैयार किया गया था और अब इसे असम में अवैध प्रवासियों को ढूंढने (निकालने) हेतु अपडेट किया जा रहा है|
असम एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसके पास एन आर सी है| केंद्र सरकार द्वारा असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के नवीनीकरण और सुधार कार्य को पूरा करने की अवधि 30 जून, 2019 तक बढ़ा दी गई है|
नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 जहां
एक और गैर-मुस्लिम प्रवासियों या रिफ्यूजियों को भारत में नागरिकता प्रदान करने का
प्रावधान करता है| वही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में धर्म के आधार पर किसी भी
प्रकार का विभेद नहीं किया गया है|
निष्कर्ष
केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम
2016 लाने का मुख्य उद्देश्य पिछले नियमों में कुछ बदलाव करना है तथा इस संशोधन
द्वारा पड़ोसी देशों के चुनिंदा धर्मों के अल्पसंख्यक समुदायों के प्रवासियों को
भारतीय नागरिकता प्रदान करना है|
यह संशोधन विधेयक भारत के उसे संस्कृति का भी
परिचायक है, जिसमें यहाँ हर वर्ग और स्थान से आने वाले लोगों को स्वीकार किया गया
है| परंतु असम तथा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा किए जा रहे विरोध तथा एन आर सी
और संशोधन विधेयक के बीच उत्पन्न विवाद से यह मुद्दा काफी संवेदनशील होता जा रहा
है|
इसके अतिरिक्त इतनी बड़ी संख्या में नागरिकता
प्रदान करने से उत्पन्न समस्याओं का समाधान के साथ-साथ उनके लिए संसाधनों की
व्यवस्था करना भी सरकार के लिए चुनौती साबित होगी| अतः इस विधेयक को सर्वसम्मति
द्वारा तथा सभी आशंकाओं को दूर करने के पश्चात ही अमल में लाना ज्यादा उचित होगा|
Please do not enter any spam link in comment box.